लद्दाख में अनशन, दिल्ली में प्रदर्शन | Hunger strike in Ladakh enters 7th day

तो ऐसा उथल-पुथल हो रहा है मगर हमारी मेन स्ट्रीम मीडिया जरा भी चर्चा नहीं कर रही है मेरी आपसे विनती है कि आप एक मीडिया बने और इन वीडियोस को शेयर करें और कहें इन हमारे भारत के मीडिया चैनल से जो कि चौथी स्तंभ है पिलर हैं डेमोक्रेसी के कि वह अपना फर्ज निभाएं मुझे नहीं समझ आता है वह रात को कैसे सोते होंगे इस तरह के दोगल पंथी में मुझे उम्मीद है कि आप सब लद्दाख का समर्थन करेंगे भारत के सीमा की सुरक्षा का समर्थन करेंगे क्योंकि लद्दाख के संरक्षण में ही भारत की सुरक्षा है नमस्कार मैं रवीश कुमार लद्दाख की खबरें क्यों गायब हैं इस सवाल का जवाब

 

Hunger Strike in Ladakh Enters 7th Day: Protest in Delhi

(00:45) जानने की कोशिश करेंगे तो पता चलेगा केवल लद्दाख की खबरें गायब नहीं है गायब तो मणिपुर की खबरें भी हैं खबरें वही हैं जिनका संबंध बीजेपी की राजनीति से है प्रधानमंत्री की दौरों से है और केंद्र सरकार के विज्ञापन से से लद्दाख का आंदोलन पर्यावरण के सवाल से भी जुड़ा है इस सवाल के बहाने भी मीडिया से लद्दाख गायब कर दिया गया है लद्दाख को लेकर अनशन बड़ा होता जा रहा है पहले इसमें 70 लोग शामिल थे लेकिन आज 196 छात्रों ने अनशन में शामिल होने का ऐलान कर दिया दिन में -2 से लेकर रात में -10 तक तापमान हो जाता है फिर भी यहां खुले आसमान के नीचे अनशन जारी

(01:27) है और लोग समर्थन जताने के लिए बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं -9 डिग्री सेल्सियस में 70 लोग पूरी रात खुले आसमान के नीचे गुजारते हैं अनशन पर रहते हैं बर्फ जमा देने वाली ठंड और हाड़ कपा देने वाली हवा को झेलते रहे फिर भी गोदी मीडिया के लिए इन संघर्षों का कोई महत्व नहीं -9 या -10 डिग्री के तापमान को झेलना आसान कहां किसी किसी रात यहां का तापमान -1 डिग्री भी चला जाता है हड्डी में छेद कर देने वाली इस ठंड में लद्दाख में भूख हड़ताल चल रही है मगर कहीं कोई हलचल नहीं गोदी मीडिया विपक्ष के राज्य में झट से दौरा कर आता है लेकिन लद्दाख पर चुप हो

(02:11) गया है ठीक उसी तरह से जैसे मणिपुर को लेकर चुप हो जाता है लद्दाख में फरवरी के महीने से ही प्रदर्शन चल रहे हैं सोनम वांगचुक जिस मीडिया के हीरो रहे हैं उसी ने अपने हीरो को छोड़ दिया डॉक सोनम वांगचुक सात दिनों से अनशन पर हैं केवल नमक और पानी पर आज सातवां दिन है उनकी हालत कभी भी बिगड़ सकती है एक जमाना था जब ऐसे अनशन का मीडिया में दिन रात कवरेज हुआ करता था अब तो अनशन देखते ही गोदी मीडिया को डायरिया हो जाता है वह अपने दफ्तर से निकलता ही नहीं इस जानलेवा सर्दी में रात भर खुले आसमान के नीचे सोने पर गोदी मीडिया के एंकर विशेषण की ऐसी समा बांध

(02:53) देते कि उनके वाक्यों पर लोकतंत्र की आत्माएं उड़नछू खेलने लग जाती मगर जैसे ही अनशन पर बैठे हैं सोनम वांगचुक मीडिया के लोकतंत्र और न्यूज की समझ से बाहर कर दिए गए हैं लद्दाखी में झूले और नमस्ते मोदी जी और अमित शाह जी मैं ज्यादा नहीं बोलूंगा माइनस टेंपरेचर में ना हमें पाकिस्तान से डर लगता है ना चीन से डर लगता है ना यह बर्फीले चोटी से हमें डर लगता है मोदी जी आज सोनम अंग चुक साहब ने जो पहल किया हुआ है एक हम लद्दाख जो एक नेशनलिस्ट है आपको एक चीज संक्षेप में बना बोलना चाहता हूं कि अगर नेशनलिस्ट का अवार्ड आपने देखना है तो लद्दाख में देखिए

(03:40) परमवीर चकर महावीर चक्कर सेना मेडल बार महावीर चक्कर यह वह जमीन है जहां कर्नल रिंचन ने नबरा बना के 303 बंदूक से विद जीरो कैजुअलिटी से हमने तुतुक जैसे इलाके को लाबेट किया यह वो बाशिंदा है यह वो लोग है जो 1962 में अपने हाथों से एक एयरपोर्ट बनाया बॉर्डर एरिया में जैसे थोज एयरपोर्ट है नबरा में तो लिहाजा आपने शायद हमें पहचानने में गलत किया है तो हमने क्या मांगा है जो आपके संविधान में जो बाबा भीम राव अंबेडकर के संविधान में जो अवेलेबल है हमने आपसे एक संरक्षण मांगा है सिख शेडल तो लिहाजा इस माइनस टेंपरेचर में जो बॉर्डर एरिया से यहां से दूर दूर से आए

(04:27) हैं लोग इनसे आपके आपसे एक अपील है कि हमारे पुहार जो है इल्तिजा जो है आप सुनिए जुले सलाम जय हिंद हम ठीक बॉर्डर से यानी कि एलओसी से लाइन ऑफ कंट्रोल से आए हैं नुब्रा वैली से सचन बेल्ट और जो तुरतुर है ठीक पाकिस्तान के जो सीमा पर हम यहां से 205 किमी सफर य करके इस हंगर स्ट्राइक क्लाइमेट फास में जुड़ने के लिए आए हैं हम इसलिए आए यहां पर क्योंकि आज लद्दाख जो है हमारी जो भविष्य है हमारे फ्यूचर है हमारी आइडेंटिटी हमारी कल्चर हमारी एनवायरमेंट सब रिस्क पे है इस लद्दाख को बचाने के लिए हमारे लद्दाख के का सोना वाचू ने एक रास्ता चुना गांधी का रास्ता चुना नॉन

(05:14) वायलेंट रास्ता चुना है उस रास्ते पर हम चलकर हम अपनी लद्दाख के लिए लद्दाख की मांगों को हासिल करने के लिए आज इस कड़ाके की ठंड में यानी कि माइनस लगभग मेरे हिसाब से -9 से लेकर 15 के टेंपरेचर में इतने लोग आ चुके हैं आप देख सकते हैं हम स्लीपिंग बैग और ल के साथ इस जज्बे के साथ यहां पर आए हैं ताकि हमारे लद्दाख की बात को सुनी जाए समझी जाए और जो दुख दर्द हम इतने एक्सट्रीम क्लाइमेट में फेस करते हैं हमारे संरक्षण कितना जरूरी है इस चीज के साथ हम जुटने के लिए आज नबरा से सियाचोक्यू चुके हैं प्रधानमंत्री ने 10 साल में एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की इस पर कोई

(05:55) चर्चा नहीं 10 महीने होने को आ रहे हैं वे मणिपुर नहीं गए मगर मणिपुर में यूनिटी मॉल का उद्घाटन कर रहे हैं वह भी ऑनलाइन वहां चल रही हिंसा पर एक शब्द नहीं कहा मणिपुर में सेना और पुलिस के अधिकारी अगवा कर लिए जा रहे हैं सरकार लगातार नाकाम नजर आती है मगर खबरों में सन्नाटा पसरा है मीडिया के लिए आज लद्दाख दूसरा मणिपुर बन गया है उसे मणिपुर की तरह लद्दाख का कवरेज करना ही नहीं है तब भी जब बड़ी-बड़ी संख्या में लोग सोनम वांगचुक के प्रदर्शन में चले आ रहे हैं यह 12 मार्च की सुबह का वीडियो है बर्फ गिर रही है मगर लोग फिर भी डटे हुए हैं सब

(06:36) अपनी-अपनी जगह पर बैठकर विरोध जता रहे हैं सोनम वांगचुक भी खुले आसमान के नीचे यहीं बैठे हैं सात दिनों से अन्न ग्रहण नहीं किया है ऐसा विहंगम और ढ़ निश्चय का दृश्य भी टीवी के पर्दे से और अखबारों के पन्ने से गायब  है 12 मार्च की सुबह का यह दूसरा वीडियो है इस ठंड में भी बड़ी संख्या में छात्र समर्थन देने आए हैं यह सभी लद्दाख यूनिवर्सिटी के छात्र हैं इनमें से 196 छात्रों ने अनशन पर बैठने का फैसला किया है लद्दाख की परंपरा के अनुसार सभी छात्रों ने बारी-बारी से खता पहनाकर अनशन पर बैठे सोनम वांगचु को सम्मानित किया

(07:21) उनके सामने सफेद गमछे का ढेर लग गया है यूनिवर्सिटी के छात्रों का इतनी बड़ी संख्या में आना बता रहा है कि जिन मुद्दों को लेकर य हो रहा है उसे कितना जन समर्थन प्राप्त है मगर मीडिया में कहीं भी दृश्य आपको नजर नहीं आएगा सोनम वांगचुक का कहना है कि उन्हें समर्थन देने आए छात्रों को यूनिवर्सिटी की तरफ से डराया धमकाया जा रहा है तरफ खुशी है कि हमारे युवा इस आंदोलन में जो कि हो ही इनके लिए रहा है इनके भविष्य के लिए रहा है जब यह लद्दाख को पाए अपने हाथों में तो एक अच्छा संरक्षित लद्दाख जिसका पर्यावरण हेल्दी हो ऐसा लदाख पाए उसी के

(08:10) लिए हो रहा है उसमें इन्होंने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया जो कि बहुत ही जायज है और नेचुरल है दुख है तो इस बात का दुख है कि जो यूनिवर्सिटी ऑफ लद्दाख है वो इन पर अभी जैसा कह रहे थे बहुत दबाव डाल रहे थे और वह भी इनफॉर्मल तरीकों से कि इनको अचानक से एग्जाम लिया जाएगा इनको प्रेजेंटेशन देना होगा यह तरीके अच्छे नहीं हैं एक यूनिवर्सिटी में हर तरह के डेमोक्रेटिक प्रिंसिपल्स का अनुभव देना भी जरूरी है अगर वह भाग ले रहे हैं तो कोई गैर क्या कानूनी काम नहीं कर रहे हैं कोई वह संविधान को तोड़ने की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि संविधान को लागू करने की बात कर

(09:01) रहे हैं संविधान के जो अनुच्छेद हैं छठवां शेड्यूल उसका लागू करने की बात कर रहे हैं सरकार ने जो वादा किया है उसको याद दिलाने की बात कर रहे हैं इतने क्यों डरे हुए हैं कि आपका याद वादा याद दिलाने पर ही आप इतने सहम जाते हैं अब इतने शांतिपूर्ण तरीके से यह विद्यार्थी य स्टूडेंट्स आ रहे हैं उसमें आप इस तरह के हथकंडे अपनाएंगे तो आप अशांति के बीच बो रहे हैं फिर जब यह मजबूर हो जाएंगे तो कुछ भी हो सकता है ऐसा ना करें मैं कहूंगा ऐसा ना करें जैसा अंग्रेज भारत के साथ करते थे कि वह दबाव डालकर उनका एक्सप्रेशन बंद कर देते थे घट देते थे उनके जबान को ऐसा ना

(09:48) करें जो चीन तिब्बत में कर रहा है या पाकिस्तान बांग्लादेश में करता था आजाद होने से पहले तो यह तरीके कभी कामयाब नहीं होते हैं बल्कि इस से और शक्ति मिलती है विद्रोह की लोगों में तो हम चाहते हैं शांति से बातचीत से भाईचारे से प्यार से सरकार के साथ बात हो और इस तरह सुलझाया जाए कि बाद में हमें पछताना ना पड़े कि रिश्ते टूट गए रहीम कहते हैं रहीमन दागा प्रेम का ना तोड़ो पिचका टूटे फिरना जुड़े जुड़े गांठ पड़ जाए तो इस तरह के काम करके आपको प्रेम का दागा ही तोड़ देंगे और उसके बाद फिर जुड़ेगा नहीं और जुड़े तो फिर गांट पड़

(10:34) जाएंगे और लद्दाख जैसे संवेदनशील सीमा पर ऐसा करना भारत के सुरक्षा के लिए अच्छा नहीं होगा तो मैं याद दिलाना चाहूंगा यूटी एडमिनिस्ट्रेशन को भी और यूनिवर्सिटी को भी कि आप प्यार से काम ले अभी हम देख रहे हैं कि यहां पर हम बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से बैठे हुए हैं मगर यहां पर कहीं सीसीटीवी लगा रहे हैं जो कि ये यह स्थल तो शहीदों की स्मृति का स्थल है जो कि लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन द्वारा संचालित करता है किया जाता है उस परे आप ऐसे कैमरे लगा रहे हैं जैसे हम यहां पर मुजरिम बैठे हुए हैं मैं अपील करता हूं कि यह सब कैमरे हटाइए और शांतिपूर्ण ढंग से हमसे आप

(11:20) बर्ताव करें तो शांतिपूर्ण ही यह आंदोलन रहेगा ऐसा नहीं है कि सोनम वांगचुक इस मीडिया के लिए अ जान है कई चैनलों और अखबारों में उनके इंटरव्यू लगातार चलते रहे हैं मगर अनशन के बाद से सब कुछ बदल गया है मुख्य धारा के मीडिया पर कोई असर नहीं पड़ा जब उन्होंने अपील की इनका यह बयान केवल whatsapp2 में बड़ा प्रदर्शन हुआ हजारों की संख्या में उस प्रदर्शन में लोग आए थे यह 6 मार्च का वीडियो है जिस दिन सोनम वांगचुक ने अनशन का ऐलान किया था इस अनशन का समर्थन करने आए लोगों की मौजूदगी आप खुद भी देख सकते हैं इतने ही लोग अगर प्रधानमंत्री मोदी की सभा में यहां आ गए

(12:20) होते तो उनकी लोकप्रियता दिखाने के लिए गोदी मीडिया दिन रात इसे शेयर करता और चैनलों पर दिखाया जाता यहां मांग उठ रही है कि लद्दाख के पहाड़ों का हाल हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की तरह नहीं होना चाहिए इसके लिए जरूरी है कि लद्दाख को राज्य का दर्जा मिले और संविधान की छठी अनुसूची यहां लागू हो ताकि यहां के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन ना हो 4 साल से लद्दाख के लोग इंतजार कर रहे हैं कि वहां के प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षण मिलेगा मगर मिला नहीं बीजेपी ने 2019 के चुनावी घोषणा पत्र में और 2020 के पर्वतीय परिषद के चुनाव में इसे प्राथमिकता दी थी

(13:05) लेकिन अब इन बातों से मुकने की खबरें आ रही हैं इन मांगों को लेकर लद्दाख एपेक्स बॉडी और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के लोग मिलकर प्रदर्शन कर रहे हैं लद्दाख में छठी अनुसूची की मांग को लेकर पहले भी कई बार बड़े प्रदर्शन हो चुके हैं इनका कहना है कि हिल ऑटोनोमस काउंसिल बनाई तो गई है मगर उसके पास पंचायत जितने ही अधिकार हैं पहला हमारा डिमांड स्टेटहुड फॉर लद्दाख और दूसरा लेक अरगिल के लिए सिख शेड्यूल में सेफगार्ड की बात यह हमारे दो मेन डिमांड है जिसको अभी रिसेंटली हमने दिल्ली में होम मिनिस्टर के साथ हमने बातचीत की थी उसमें गवर्नमेंट ने इस डिमांड को रद्द कर

(13:57) दिया यह इसलिए जरूरी है क्योंकि यहां के जो लोगों के टिपिकल डिमांड है यहां लद्दाख में 97 पर लोग शेड्यूल ट्राइब है और यहां का कल्चर यहां का लैंग्वेज सब कुछ मेन मेन स्ट्रीम से बहुत डिफरेंट है और हमारे जैसे शेड्यूल ट्राइब लोगों के प्रोटेक्शन के लिए उनके सेफगार्ड के लिए हमारा कांस्टिट्यूशन हमारे कांस्टिट्यूशन में सिख शेडल एक प्रावधान है तो इसलिए हम सिख शेडल चाहते हैं और और सिख शेड्यूल के जरिए से हम लद्दाख के कल्चर को यहां के इकोलॉजी को यहां के एंप्लॉयमेंट को यहां के लैंड को सेफ सेफगार्ड करना चाहते हैं अभी हमारा हम सोचते हैं गवर्नमेंट ने अभी

(14:44) इसको हमारे डिमांड को रिजेक्ट किया है लेकिन हमारा स्ट्रगल हम बहुत लंबे समय के स्ट्रगल के लिए हम लोग तैयार हैं अगर अभी का गवर्नमेंट नहीं मानता है तो हो सकता है इलेक्शन के बाद दूसरा गवर्नमेंट आएगा या क्या हालत होगी हमारा स्ट्रगल बिल्कुल बराबर जारी रहेगा जब तक हम स्टेटहुड और सिख शल को अचीव नहीं करेंगे लोग यह समझते हैं कि हम सिक्स रूल इसलिए डिमांड कर रहे हैं कि हम यहां लद्दाख में कोई इंडस्ट्री अलाव ही नहीं करेंगे यह हमारा मकसद नहीं है हम यह चाहते हैं कि अंदा दून इंडस्ट्रियल ना हो अंधाधुन यहां के रिसोर्सेस का एक्सप्लोइटेशन ना हो और लोग यह कहते हैं
(15:25) कि यहां इंडस्ट्री आएगा तो बहुत एंप्लॉयमेंट अपॉर्चुनिटी होगा यहां के लोगों में लेकिन लोगों को यह नहीं पता है कि लद्दाख के जो हमारा जो टूरिजम सेक्टर है यह लद्दाख के बाहर से हजारों लोगों को एंप्लॉयमेंट देता है जब हम लद्दाख में अनइंप्लॉयमेंट की बात करते हैं तो वह एजुकेटेड लोगों की एंप्लॉयमेंट की बात करते हैं जो यूनिवर्सिटी कॉलेज से पढ़ के जो प्रोफेशनल्स है उनका जो रिक्रूटमेंट पिछले चार सालों में नहीं हुआ उसकी बात करते हैं रा 370 ने लद्दाख को काफी बदल दिया इससे पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा में लेह से दो विधायक करगिल से
(16:06) दो विधायक हुआ करते थे दो पार्षद भी होते थे लेकिन 370 हटने के बाद उनका प्रतिनिधित्व चला गया फरवरी के प्रदर्शन के बाद केंद्र सरकार ने एक उच्चस्तरीय कमेटी बनाई लद्दाख एपेक्स बॉडी करगिल डेमोक्रेटिक एलायंस के प्रतिनिधियों से बात भी की मगर छठी अनुसूची लागू करने पर सहमति नहीं बनी लिहाजा 6 मार्च से 70 लोग अशन पर बैठ गए इस सवाल ने करगिल और लद्दाख को एक बार फिर से एक कर दिया है सोनम वांगचुक सलाम वालेकुम भी कहते हैं और जुले भी कहते हैं जो लद्दाख के अभिवादन का तरीका है लद्दाख जैसे ही अपनी बात करता है दिल्ली का मीडिया उससे दूर हो जाता है आज
(16:47) उसी लद्दाख के लोग जमा होकर मोदी मोदी के नारे लगा दें तो दिल्ली का मीडिया उनके पास पहुंच जाएगा लद्दाख के सांसद जब मोदी की तारीफ करते हैं तो गोदी मीडिया में उन का इंटरव्यू चलने लग जाता है लद्दाख के लोग जब अपने पहाड़ अपनी प्रकृति के संरक्षण की मांग करते हैं उस पर चर्चा गायब हो जाती है जिंदाबाद आवाज दो हम एक है आवाज दो हम एक है आवाज दो हम एक है इधर दिल्ली में एक मणिपुर और होता दिख रहा है मणिपुर से मेरा मतलब उस प्रदेश से है जो दिल्ली की मीडिया को दिखाई नहीं देता जो कई महीनों से हिंसा की चपेट में है मगर उसे लेकर केंद्र सरकार से सवाल नहीं किया
(17:27) जाता उसी तरह केंद्रीय सचिवालय सेवा के कर्मचारियों के इन प्रदर्शनों को भी मीडिया प्राथमिकता के साथ नहीं दिखा रहा दिल्ली में हो रहे इस प्रदर्शन की दिल्ली में ही चर्चा नहीं है हजारों की संख्या में अधिकारी जिस जगह पर परिक्रमा नुमा प्रदर्शन कर रहे हैं उसी के आसपास से कितने ही मीडिया वाले गुजरते हैं मगर केंद्र सरकार के कर्मचारी उसकी खबरों से गायब हैं कर्मचारी कभी शास्त्री भवन की परिक्रमा करते हैं कभी निर्माण भवन की परिक्रमा के जरिए प्रदर्शन का यह तरीका मेरी नजर में विचित्र है नागरिकों के भीतर जब लोकतांत्रिक का बोध समाप्त हो जाता है
(18:05) कमजोर पड़ जाता है कंफ्यूज हो जाता है वह प्रदर्शन को भी भजन में बदल देता है यह स्पेस बचाने का तरीका नहीं है बल्कि प्रदर्शन के स्पेस को कम करने का आंदोलन लगता है वैसे मेरी दिलचस्पी यह जानने में भी है कि इनके भी वर्ग के आंदोलन का कभी समर्थन किया होगा शाहीन बाग के समय यह किस तरह की बातें और पोस्ट शेयर किया करते थे ्र में किस तरह का प्रोपेगेंडा ठेला जाता होगा घर जाकर गोदी मीडिया का थर्ड क्लास कवरेज कितने लोग इनमें से देखा करते थे इतना जानते ही मैं जान जाऊंगा कि इनका प्रदर्शन परिक्रमा करके क्यों हो रहा है प्रदर्शन
(18:51) किया जाता है अपने भीतर के डर को खत्म करने के लिए यहां एक डर के साथ प्रदर्शन होता नजर आ रहा है लद्दाख तो गायब है ही दिल्ली भी गायब है वंदे भारत के उद्घाटन से सरकार अपनी रफ्तार का प्रदर्शन कर रही है लेकिन अपने ही दफ्तरों में उसके कर्मचारियों की गाड़ी धीमी गति से चल रही है यह आज का मामला नहीं है केंद्रीय सचिवालय सेवा के अधिकारी पहले भी कई बार अपने प्रमोशन को लेकर प्रदर्शन कर चुके हैं हैं 2022 में इनके प्रदर्शन के बाद काडर समीक्षा के लिए कमेटी बनी थी अब इन्हें इसकी रिपोर्ट लागू कराने के लिए परिक्रमा नुमा प्रदर्शन करना
(19:39) पड़ रहा है परिक्रमा ही है यह किसी सरकारी इमारत के भीतर चारों तरफ घूमकर यह प्रदर्शन किया जाता है सीएसएस फोरम का कहना है कि जल्दी प्रमोशन नहीं हुआ इन पदों को नहीं भरा गया तो असहयोग आंदोलन शुरू कर देंगे 12000 से अधिक अधिकारियों की यह हालत हो गई है कि उन्हें कोई गोदी चैनल दिखाने के लायक नहीं समझता इनकी शिकायत है कि 2600 पद खाली पड़े हैं और प्रमोशन नहीं दिया जा रहा कई विभागों ने 2022 में अपनी जरूरत 1 साल पहले ही भेज दी ताकि समय से प्रमोशन हो जाए उसके बाद भी प्रमोशन नहीं हुआ इन्हें भी आरटीआई से जानकारी लेनी पड़ती है कि 00 पद खाली हैं
(20:20) उन पर प्रमोशन हो सकते हैं यह केवल 20 विभागों की संख्या है अगर सारे विभागों का हाल देख लिया जाए तो यह संख्या बहुत अधिक हो सकती है केंद्रीय सचिवालय के कर्मचारियों को अंडर सेक्रेटरी से डेप्युटी सेक्रेटरी बनने में 13 साल लग जा रहे हैं इस समय 1200 डेप्युटी सेक्रेटरी ऐसे हैं जिन्हें प्रमोशन का इंतजार है और इसी इंतजार में रिटायर हो जा रहे हैं आखिर सरकार प्रमोशन क्यों नहीं दे रही है क्या पैसा बचाना चाहती है कायदे से यह पहले पन्ने की खबर नहीं होनी चाहिए कि प्रधानमंत्री गवर्नेंस की बात करते हैं और इसी दिल्ली में उनकी ही सरकार के
(20:57) मंत्रालयों के भीतर गवर्नेंस की यह हालत है लद्दाख में सोनम वांगचुक के अनशन की तुलना आप केंद्रीय सचिवालय के कर्मचारियों की परिक्रमा प्रदर्शन से बिल्कुल नहीं कर सकते क्योंकि दोनों ही प्रदर्शनों में अपने अधिकारों की मांग को लेकर जो लोकतांत्रिक समझ है उसमें काफी अंतर है 12000 कर्मचारियों के प्रदर्शन में नैतिक शक्ति का घोर अभाव दिखता है और 70 लोगों के प्रदर्शन में आत्मबल से लेकर नैतिक बल का प्रचंड जोर दिखता है तभी तो कोई -9 डिग्री में भी रात गुजारता है और कोई बगल के दफ्तर की बिल्डिंग के चारों तरफ घूमकर अपनी डेस्क पर आ जाता है रही बात मीडिया
(21:37) की तो इस देश में गोदी मीडिया है और गोदी मीडिया को सरकार के खिलाफ प्रदर्शन पसंद नहीं है या तो आप इस गोदी मीडिया से कवरेज करवा लीजिए या अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर लीजिए दोनों अब एक साथ नहीं हो सकता क्यों नहीं हो सकता यह आप भारत के किसानों से जाकर पूछ लीजिए नमस्कार मैं रवीश कुमार m

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