नागरिकता क़ानून: संविधान पर धर्म का प्रहार | CAA implemented

नमस्कार मैं रवीश कुमार नागरिकता कानून के नियमों को लागू कर दिया गया है पिछले दो-तीन दिनों में इस कानून के नियमों को लेकर बहुत सारे पहलू सामने आए हैं लिहाजा उन्हें एक साथ रखकर देखने में इसकी राजनीति और इसके असर को हम ठीक से देख पाएंगे इसलिए हमने तुरंत इस पर वीडियो बनाने से पहले यही सोचा कि जो इस विषय के विद्वान हैं उनके सुचि विश्लेषण का इंतजार किया जाए ताकि एक समग्र वीडियो बने जिसे देखने के बाद इस मसले से जुड़ी सभी महत्त्वपूर्ण बातों की जानकारी आम दर्शकों को एक साथ हो जाए हम इन सभी का नाम वीडियो के आखिर में क्रेडिट रोल में देंगे जिनके

 

CAA Implemented: Citizenship Law Strikes at Constitution's Secular Fabric

(00:42) विश्लेषण का लाभ हमने हासिल किया है जाहिर है यह वीडियो लंबा होगा और आपको पूरा देखना ही पड़ेगा इस मामले में रील्स नहीं बन सकता दिसंबर 2019 में नागरिकता कानून संसद से पास हुआ 10 जनवरी 2020 को इसे अधिसूचित कर दिया गया फिर सब भूल गए 4 साल से अधिक समय लगा है इस कानून के नियम बनने में और लागू होने में इस दौरान सरकार ने संसद में आठ बार विस्तार लिया है ऐसा करना जरूरी था क्योंकि नियम नहीं बनने पर कानून लैप्स हो जाता सरकार ने आज तक नहीं बताया कि नियम बनाने में इतने साल क्यों लगे नियमों का जो स्तर है वह वैसा ही है जिसकी

(01:24) बुनियाद पर नागरिकता कानून बना है इन नियमों में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे देख कर लगता हो कि नियमों की खोज करने के लिए भारत सरकार के अधिकारी चांद पर गए थे और वहां से लौटने में चार साल लग गए तब जाकर नियम बने हैं और अब लागू हुए हैं सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता कानून को चुनौती दी गई है पहले इस मामले में देख लेते हैं कि अदालत कहां है और यह भी जान लेते हैं कि इलेक्टोरल बंड के मामले की तरह यह मामला भी कई साल से सुप्रीम कोर्ट में अटका हुआ है सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को असंवैधानिक करार देने की मांग के साथ करीब 200 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं

(02:06) तृणमूल कांग्रेस की सांसद मोहुआ मोइत्रा कांग्रेस के नेता जयराम रमेश रमेश चेन्नी थला एएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी आईयूएमएल असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी अहोम गण परिषद नेशनलिस्ट पीपल्स पार्टी असम मुस्लिम स्टूडेंट फेडरेशन असम और डीएमके ने याचिका दायर की है अक्टूबर 2022 में यह मामला तत्कालीन चिज यूयू ललित की बेंच के सामने आया आदेश हुआ कि इस पर अंतिम सुनवाई चीफ जस्टिस के रिटायरमेंट के बाद शुरू होगी आज तक शुरू नहीं हुई यानी अक्टूबर 2022 से इस मामले में कोई सुनवाई नहीं हुई है नागरिकता कानून में कहा गया है कि 31 दिसंबर 2014 तक या उससे पहले पाकिस्तान

(02:52) बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होकर आने वाले हिंदू पारसी बौद्ध सिख जैन और ईसाई को नागरिकता दी जाएगी इन याचिकाओं में आर्टिकल 14 के आधार पर चुनौती दी गई है इसमें कहा गया है कि भारत का संविधान किसी भी व्यक्ति को कानून के सामने बराबरी का अधिकार देता है उससे वंचित नहीं करता उसे भारत के राज्य क्षेत्र के कानूनों का समान संरक्षण मिलता है हमें यह समझना होगा कि इस कानून को केवल मुसलमानों के कारण चुनौती नहीं दी गई है बल्कि धर्म को आधार बनाने के कारण दी गई है धर्म के आधार पर केवल इस्लाम के साथ इसमें भेदभाव नजर नहीं आता है बल्कि अन्य

(03:38) धर्मों के साथ भी भेदभाव नजर आता है कुछ जानकारों ने लिखा है कि हिंदू धर्म के साथ भी भेदभाव है एक आधार और है जिस पर इस कानून को चुनौती दी जा रही है 1955 के नागरिकता कानून का सेक्शन 6a यह सेक्शन 1985 में हुए असम समझौते की दिन है जिसमें तय हुआ था कि जनवरी 1966 से लेकर 24 मार्च 1971 के बीच जो लोग असम में आकर बसे हैं उन्हें विदेशी नहीं माना जाएगा इसमें धर्म का कोई आधार नहीं था यह सब कुछ एक लंबी प्रक्रिया के बाद तय हुआ लेकिन अब कहा जा रहा है कि 31 दिसंबर 20144 और उससे पहले जो भी आए हैं उन्हें नागरिकता दी जाएगी यह बात असम के एक बड़े तबके को पसंद नहीं आई

(04:30) कि इस डेट का आधार क्या है और किसके साथ बातचीत के बाद यह कट ऑफ तय हुआ है 1 जनवरी 1966 से लेकर 24 मार्च 1971 का कट ऑफ लंबे आंदोलन और सरकार से बातचीत के बाद तय हुआ कानून विद इंदिरा जयसिंह ने लिखा है कि इसी जनवरी तक केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में सेक्शन 6a का बचाव कर रही थी जिसके तहत 1971 का कट ऑफ डेट है लेकिन अब वही सरकार नया कट ऑफ डेट लेकर आ गई है कि 31 दिसंबर 2014 के पहले जो आया है वह मुसलमान छोड़कर बाकी के छह धर्मों से आता है तो उसे नागरिकता दी जाएगी 1971 के पहले का कट ऑफ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता है

(05:18) जबकि 14 वाला करता है क्या आपको लगता है कि यह सुसंगत कानून है इस पहलू पर चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने सिक्स ए वाले पहलू पर दिसंबर 2023 में सुनवाई पूरी कर ली थी मगर अभी तक फैसला नहीं आया है देखना होगा कि नागरिकता कानून के लागू होने के बाद इसके तहत किसी को नागरिकता मिल जाती है तो इस फैसले का इस पर क्या असर होगा अगर फैसला प्रतिकूल आया तो क्या जिन्हें नागरिकता मिली है वह वापस ले ली जाएगी क्या ऐसा करना संभव होगा हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि असम की राजनीति में बांग्लादेशी घुसपैठिए का मुद्दा रहा है इसे बड़ा करने में वहां के संगठन और

(06:04) बीजेपी ने काफी दम लगाया इसी का नतीजा था कि करीब 1600 करोड़ रुपए फूंक कर एनआरसी कराई गई 2018 के साल में जब नागरिकता रजिस्टर का काम हो रहा था तो पता चला कि 40 लाख लोग इससे बाहर हो गए और इसमें बड़ी संख्या में हिंदू हैं जो अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए 2019 में फिर से एनआरसी हुई और 19 लाख लोग बाहर हुए हुए कहा जाता है कि उसमें 12 लाख हिंदू बाहर हुए तब बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में कहा कि हम सही रजिस्टर तैयार कराएंगे मतलब जो रजिस्टर सुप्रीम कोर्ट के नेतृत्व में बना उसे नहीं माना आज तक सही नागरिकता रजिस्टर का पता नहीं ध्यान रहे असम की राजनीति में

(06:48) बाहरी विदेशी या बांग्लादेशी घुसपैठियों का विरोध धर्म के आधार पर नहीं है यह राजनीति हिंदू बंगाली और मुस्लिम बंगाली दोनों का विरोध करती है और बाहर जाने के लिए कहती है जो भी बांग्लादेश से आए हैं मगर नागरिकता कानून धर्म के आधार की बात करता है इस कानून की राजनीति हिंदी अखबारों में कुछ और नजर आएगी मगर असम और बंगाल में जाते ही बदलकर कुछ और हो जाती है दिसंबर 2019 में नागरिकता कानून संसद में पास हुआ इसके बाद सरकार चुप्पी साथ गई अप्रैल मई 2021 में बंगाल असम में विधानसभा चुनाव हुए आप जानते हैं कि की राजनीति से एनआरसी और सीएए का मुद्दा

(07:32) निकला है लेकिन यहां के मेनिफेस्टो में बीजेपी ने नागरिकता कानून को शामिल ही नहीं किया लेकिन बंगाल के मेनिफेस्टो में नागरिकता कानून को शामिल किया गया और कहा कि सरकार बनी तो कैबिनेट की पहली मीटिंग में लागू कर देंगे बंगाल में बीजेपी की सरकार नहीं बनी बीजेपी को पता था कि असम में एनआरसी के कारण लाखों की संख्या में हिंदू बाहर हो गए हैं इनमें से सभी बांग देशी ही थे ऐसा बिल्कुल नहीं कहा जा सकता यही नहीं यह साबित भी करना मुश्किल था कि जो मुसलमान इस रजिस्टर में नहीं आए हैं वह सभी के सभी घुसपैठिए हैं और बांग्लादेश से आए हैं इन सभी पर धार्मिक उत्पीड़न का

(08:15) मामला साबित करना तो और मुश्किल हो जाता यह तो कई साल से भारत में रह रहे हैं अगर बीजेपी इन लोगों को नागरिकता देती तो असम की हिंदू जनता ही इसके खिलाफ हो जाती असम में नागरिकता कानून का इसलिए विरोध होता है यहां के कई संगठन उन सभी को विदेशी मानते हैं जो बांग्लादेश से आए हैं चाहे हिंदू हो या मुसलमान इसीलिए बीजेपी असम में चुप हो गई और बंगाल जाते ही गरजने लगी असम में बहुत पूछने पर कहकर निकल जाती रही कि कोविड के बाद लागू करेंगे गृहमंत्री अमित शाह का 2022 का एक बयान फिर से सुन लीजिए वह बार-बार यही कहते रहे मित्रों आज मैं उत्तर बंगाल में आया हूं मैं आपको

(08:59) स्पष्ट ता कर कर जाता हूं तृणमूल कांग्रेस सीएए के बारे में सीएए के बारे में अए फैला रही है कि सीएए जमीन पर लागू नहीं होगा मैं आज कह कर जाता हूं कोरोना की लहर समाप्त होते ही सीएए को हम जमीन पर उतारेंगे और हमारे भाइयों को नागरिकता देने का ममता दध आपको यही चाहती हो कि घुमट चलती रहे और बंगाल से जो शरणार्थी आए है उनको नागरिकता ना मिले मगर कान खोलकर तृणमूल वाले सुन ले सीए वास्तविकता था वास्तविकता है और वास्तविकता रहने वाला मई 2022 का ग्री मंत्री का यह बयान है आज मार्च 2024 हो गया इस बयान के दो साल तक कुछ भी नहीं हुआ बीजेपी के नेता

(10:02) बंगाल में जाते ही नागरिकता कानून लागू करने की बात करने लग जाते हैं और असम जाते ही मैनेज करने लग जाते हैं कि वहां ज्यादा विरोध ना हो किसी तरह मामला संभल जाए इसलिए नागरिकता कानून को पूरे देश में लागू नहीं किया गया है असम मेघालय मिजोरम त्रिपुरा के जनजातीय क्षेत्रों में लागू नहीं किया गया है उन इलाकों में भी लागू नहीं किया गया है जहां पर जनजातीय क्षेत्रों में जाने के लिए इनर लाइन परमिट लेनी पड़ती है नागरिकता कानून का मसला बंगाल में भी आसान नहीं है बीजेपी ने बांग्लादेश से आए मटुआ दलित समुदाय से वादा किया था कि नागरिकता कानून लागू कर

(10:43) देंगे और वादा करके भूल गई जब यह समुदाय तृणमूल की तरफ जाने लगा तो बीजेपी को फिर से याद आया कि लागू करना है मीडिया रिपोर्ट है कि मटुआ समुदाय इस फैसले से अब खुश है लेकिन दलितों का एक और बड़ा हिस्सा राजवंशी समुदाय खुश नहीं राजवंशी अपने आप को मूल निवासी समझते हैं और बाकियों को बाहरी इसलिए वे चाहते हैं कि बंगाल में पहले एनआरसी हो यानी जो बाहरी हैं घुसपैठिए हैं उनकी गिनती हो पहचान हो और बाहर निकाला जाए जाहिर है अगर ऐसा हुआ तो मटुआ समुदाय के लोगों में घबराहट फैल जाएगी तो अभी तक आपने देखा नागरिकता कानून ने हिंदू समुदाय और बंगाल से लेकर असम की

(11:24) राजनीति को कितना उलझा दिया है इसी से याद आता है कि आप सीएए को एनआरसी के बिना नहीं देख सकते यह गलती कभी मत कीजिएगा अमित शाह ने क्रोनोलॉजी के जरिए इसे समझा दिया था असम में भले वे एनआरसी की बात अब ना करें मगर हो सकता है बंगाल में राजवंशी समुदाय को खुश करने के लिए एनआरसी की बात शुरू कर दें ए आईन अपनी जद नागरिक ना होन ताले संविधान 14 नंबर धारा 21 नंबर धाराए सब अधिकार थे अनी वंचित हन की कोटे गले चैलेंज करते पबन ना शु मात्र तीन देश अफगानिस्तान बांगलादेश और पाकिस्तान शु मात्र छटा धर्म हिंदू शिख बद्ध जैन पसर खिस्ट धर्म

(12:18) मायनर श्रीलंका बाद इस्लाम धर्म भाद टा भारतीय संवाद संविधान धर्मत मूले कठोर आघात र पर के साते एनआरसी के जुक्तो कर देवे धर्म ति नागरिक कखन शने अंतरजातिक कन्वेंशन परिष्कार बोला यूनाइटेड नेशन से अनुप वेश कारी जन बध कारण छड़ा राष्ट्र ना होए पड़ टा मानक अपमान थ विपद पड़े त पाश जागा आशय ने ता किंतु मानविता तिरे ता आश्रय ते से राष्ट्र बाध थाके एक जुमला बीजेपी जुमला र कोनो क्लेरिटी नहीं टा मानुष अत्याचार करब जन रास कर

(13:24) जन और द सीटे तीन सीटे टे जत जन अनादर भावता देया होचे बीजेपी नानान रकम कथा बोलबे आपको कोई अधिकार नहीं जाएगा सब गा व झूठा है और जुमला है कुल मिलाकर यह मामला आठ 10 सीटों को साधने का है हिंदी के अखबार आपको कुछ और बता रहे हैं लेकिन ऐसा करने से भारत राज्य का मूल किरदार बदल जाता है वह ठीक नहीं भारत ने कभी धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी नागरिकता कानून कहता है कि मुसलमान को छोड़कर और वह भी केवल तीन देशों से धर्म के कारण प्रताड़ित किए गए हिंदू सिख जैन बौद्ध पारसी और ईसाई को ही नागरिकता मिलेगी क्या प्रताड़ना केवल तीन देशों में होती है क्या हिंदू

(14:14) इन्हीं तीन देशों में प्रताड़ित होगा या हो सकता है भारत के पड़ोस में कई देश हैं केवल तीन देशों का चुनाव क्यों हुआ क्षेत्र और धर्म का आधार ही अपने आप में कई तरह की समस्याएं पैदा कर सकता है किसी भी एंगल से देखिए तो इस कानून में आपको झोल नजर आएगा 2019 और 2020 के साल में इस कानून के पक्ष में खड़े लोगों ने कई सारे कुतर्क गढ़े सबको दोहराने से कोई फायदा नहीं मगर एक कुतर्क था मुख्य कुतर्क कि मुसलमान के लिए मुस्लिम देश हैं तब फिर इस कानून में ईसाई क्यों हैं बहुत सारे ईसाई देश हैं भारत में नागरिकता क्यों दी जा रही है नागरिकता कानून में बौद्ध क्यों है

(14:58) दुनिया में बहुत सारे बौद्ध देश हैं म्यानमार भूटान वियतनाम साउथ कोरिया थाईलैंड और श्रीलंका चीन जापान बौद्ध देश नहीं है मगर यहां बड़ी संख्या में लोग बौद्ध धर्म का अनुसरण करते हैं श्रीलंका की कुछ खबरें देख लीजिए यहां पर बौद्ध राष्ट्रवाद खूंखार नजर आता है जबकि बौद्ध धर्म शांतिप्रिय माना जाता है इनकी हिंसा पर कई रिपोर्ट आपको अखबारों में मिल जाएगी श्रीलंका से भी और भारत के एक और पड़ोसी देश म्यानमार से भी श्रीलंका में सिंघला बनाम तमिल के बीच 26 साल लंबा गृह युद्ध चला है बड़ी संख्या में तमिल विस्थापित होकर भारत आए तो उन्हें नागरिकता देने का
(15:39) प्रावधान क्यों नहीं किया गया श्रीलंका में सिंघला बौद्ध बहुसंख्यक समुदाय आबादी का करीब 80 प्र तमिल समुदाय में अधिकतर हिंदू हैं बीते अक्टूबर में एक सिंगला बौद्ध धर्म गुरु द्वारा बयान दिया गया कि हर तमिल के टुकड़े टुकड़े कर देंगे ऐसे कई बयान आपको जाएंगे श्रीलंका के अति बौद्ध वादियों ने मुसलमानों पर भी हिंसा की है क्या उनकी हिंसा के शिकार लोगों को धर्म के आधार पर छोड़ दिया जाएगा आप नाव से यह कहकर उतार देंगे कि केवल हिंदू सवार होंगे मुसलमानों को पानी में फेंक दिया जाएगा फिर आप कहेंगे कि आप विश्व गुरु हैं वसुदेव कुटुंबकम में यकीन रखते हैं सबको
(16:21) अतिथि मानते हैं करुणा के सबसे बड़े ठेकेदार आप हैं इसका आधार क्या है धर्म या इंसानियत तो आप आपने देखा कि बंगाल में नागरिकता कानून का कुछ और राजनीतिक मतलब असम में कुछ और और तमिलनाडु में जाकर कुछ और सीएए से पहले बीजेपी ही खुद को संभाल ले इसके जरिए यूपी बिहार में राजनीति गरमाने की कोशिश होगी मगर गरमा जाएगी नहीं और गरमाई भी नहीं अभी तक अगर हताशा बढ़ेगी तो बीजेपी जल्दी ही एनआरसी की बात करने लगेगी ताकि चुनाव किसी भी कीमत पर हिंदू बनाम मुसलमान की पिछ पर आ जाए घबराहट में अल्पसंख्यक सड़कों पर आ जाएं और लोग तरह-तरह के बयान देने लगे ऐसा जब होगा तो
(17:05) अंकिल के लिए यह सबसे अच्छा टाइम होगा अंकिल ब्रिगेड एक्टिव हो जाएगा और सोसाइटी के गेट पर लौटने लग जाएगा इस बार अभी तक एनआरसी का हल्ला नहीं हो सका है मगर सीएए एनआरसी के आगे लटका हुआ पर्दा है कभी नहीं भूलना चाहिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर असम में एनआरसी हुई 1600 करोड़ पानी में बहा दिया गया भयंकर अफरा तफरी रही कई महीनों तक असम इसी में बिजी रहा फिर सब शांत हो गया क्या मोदी सरकार फिर से करोड़ों रुपए एनआरसी पर फूंकना चाहेगी याद रखिएगा मोदी सरकार के दौर में भारत की जनगणना नहीं हुई है इस काम में भी कोई सरकार लेट हो सकती
(17:47) है जरा याद कीजिए एनआरसी के समय कितने लोगों की जाने गई लोग लगे दस्तावेज जुटाने कि खुद को भारतीय साबित करना है और इस काम में परेशान केवल मुसलमान नहीं हुए हिंदू भी हुए असम से भाग भाग कर बिहार और यूपी के गांवों का दौरा करने लग गए कि मुखिया जी से प्रमाण पत्र बनवा ले ऐसे लोगों को भी रजिस्टर से बाहर कर दिया गया जो भारत की सेना में काम कर चुके थे सबसे बड़ी बात है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले उन हिंदुओं को अगर आप उत्पीड़न के आधार पर नागरिकता दे रहे हैं तो इसके बाद यहां उनका क्या होगा वे कहां बसाए जाएंगे उनके घर किस योजना के
(18:29) तहत बनेंगे डीडीए फ्लैट बनाक देगा या लखनऊ में फ्लैट बनेगा क्या नौकरियों में उन्हें आरक्षण मिलेगा स्कूलों में बच्चों के एडमिशन की क्या व्यवस्था होगी इसका क्या प्लान है कौन से राज्य कितने शरणार्थी लेंगे इन सब पर भी कुछ नहीं कहा गया है निरूपमा सुब्रमण्यन ने न्यूज़ लांड्री में एक लेख लिखा है कि तालिबान के लौटने के बाद अफगानिस्तान से भारत आए बहुत से सिख अब वापस चले जाना चाहते हैं क्योंकि हिंदुस्तान में नौकरी नहीं है और गुरुद्वारे भी उन्हें और उनके परिवारों को सहायता देने में असमर्थ हैं भारत ने कभी अफगानिस्तान के हजारा और ताजिक लोगों को
(19:10) शरण दी इससे भारत की दुनिया में काफी तारीफ हुई आज फिर से तालिबान उनका शोषण कर रहे हैं पर अब तो नए शरणार्थियों के लिए दरवाजे बंद हैं ऐसा इस लेख में बताया गया है क्योंकि 20144 के बाद यह लोग भारत आए हैं देखिए सीधी सी बात है कानून सीए का जो कानून आया है उसमें यह लिखा है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश में रहने वाले अल्प संख्यक वहां जो माइनॉरिटी है वह माइनॉरिटी को हमारे देश के अंदर नागरिकता दी जाएगी वहां पर लगभग ढाई से तीन करोड़ माइनॉरिटी हैं तीनों देशों के मिला के अगर उनमें वह बहुत गरीब देश हैं अगर ऐसे हमने
(19:55) अपने दरवाजे खोल दिए उनके लिए देश के दरवाजे खोल दिए उनके लिए अगर उन ढाई तीन करोड़ लोगों में एक डेढ़ करोड़ लोग भी हमारे देश में आ गए उनको कहां बसाएंगे उनको कहां रहने की जगह देंगे वहा उनको जॉब्स कहां से देंगे नौकरियां कहां से देंगे घर कहां से आएंगे मैं हिसाब लगा रहा था अगर एक डेढ़ करोड़ लोग भी आ गए आजादी के बाद 1947 में जितना बड़ा माइग्रेशन हुआ था उससे कहीं ज्यादा बड़ा माइग्रेशन इस एक सीए के कानून से होने जा रहा है जब आप इन उदाहरणों के साथ अपनी सोच का दायरा बढ़ाएंगे तो कानून का संकुचित रूप दिखने लग जाएगा फिर आपको समझ में आएगा
(20:37) कि कानून में लिखित रूप से धर्म का आधार जोड़ना कितना गलत है इससे भेदभाव को ही जगह मिलेगी और यह एक तरह से संवैधानिक हो जाएगा जबकि हमारा संविधान इस बुनियाद पर बना है कि वह किसी के साथ किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं करेगा उत्पीड़न तो किसी भी आधार पर हो सकता है किसी लेखक का हो सकता है किसी पत्रकार का हो सकता है किसी वैज्ञानिक का हो सकता है जरूरी नहीं उसी का होगा जो हिंदू होगा और अल्पसंख्यक होगा उन देशों में तीन देशों में दूसरे धर्म के लोगों का भी हो सकता है यह किस मूर्ख ने कहा है कि उत्पीड़न केवल धर्म के आधार पर होता है जो लोग धर्म ही नहीं मानते हैं
(21:20) उनका उत्पीड़न होता है तो क्या उन्हें नागरिकता नहीं मिलेगी नागरिकता आप दे क्यों रहे हैं इसीलिए कि आप उदार दिखना चाहते हैं दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि भारत दुनिया भर की मानवीय त्रास दियों से अनजान नहीं है वह लोगों को शरण देता है नागरिकता देता है उनके प्रति करुणा रखता है फिर धर्म के आधार पर इस कानून में नागरिकता क्यों दी जा रही है मशहूर कानून विद इंदिरा जयसिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में एक बड़ा सवाल उठाया है उन्होंने कहा है कि पब्लिक में धर्म के आधार पर उत्पीड़न की बात बताई जा रही है लेकिन जो नियम बनाए गए हैं उनमें तो प्रताड़ना का
(21:57) जिक्र ही नहीं है क्या आप तक यह बात पहुंची है हिंदी अखबारों ने आपको बताई है यह बात आपको इंडियन एक्सप्रेस में इंदिरा जयसिंह का यह लेख पढ़ना चाहिए यह तस्वीरें एआई जनित है असली नहीं है इंदिरा जयसिंह ने लिखा है कि नियमों में धार्मिक उत्पीड़न का कहीं जिक्र नहीं और ना ही कहीं पर यह कहा गया है कि आपको इस बात के प्रमाण देने होंगे कि धार्मिक उत्पीड़न हुआ है तभी नागरिकता मिलेगी अब बताइए कानून बना कि धार्मिक उत्पीड़न के शिकार छह धर्मों के लोगों को को नागरिकता देंगे धार्मिक उत्पीड़न हुआ है या नहीं इसका प्रमाण ही नहीं मांगेंगे ना वह कागज
(22:35) दिखाएगा ना यह कागज देखेंगे नियमों में कहा गया है कि बांग्लादेश पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले गैर मुस्लिम नागरिकों को नौ प्रकार के दस्तावेज देने हैं उन्हें उत्पीड़न का प्रमाण नहीं देना है उत्पीड़न हुआ है या अपने आप मान लिया जाएगा तब तो कोई भी झूठ बोलकर इस आधार पर नागरिकता ले लेगा जो अवैध रूप से आया है और उसका उत्पीड़न नहीं हुआ है अगर वह हिंदू है ईसाई है पारसी है बौद्ध है जैन है तो क्या उसे नागरिकता दे दी जाएगी फिर धार्मिक उत्पीड़न को आधार क्यों बनाया गया जब इसका प्रमाण ही नहीं मांगना है एक लंबी सूची बनाई गई है जिसके तहत इन्हें इन तीन
(23:18) देशों से मिले पहचान पत्र दिखाने होंगे या उन देशों की किसी सरकारी एजेंसी का कोई भी पत्र जिससे पता चले कि वहां के नागरिक रहे हैं का माना जाएगा 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में रह रहे हैं तो आधार कार्ड ड्राइविंग लाइसेंस एफ आरओ एफआर आरओ परमिट राशन कार्ड वगैरह दिखाने होंगे इंदिरा जयसिंह कहती हैं कि क्या धार्मिक उत्पीड़न के शिकार लोगों को संरक्षण नहीं मिलना चाहिए कहती है बिल्कुल मिलना चाहिए उन्हें शरणार्थी का दर्जा दिया जा सकता है चाहे वे किसी भी धर्म के हो मगर केवल धर्म के आधार पर नागरिकता देना गलत होगा इंदिरा जयसिंह ने सवाल किया है कि नागरिकता देने
(24:02) में तो काफी उदारता बढ़ती जा रही है लेकिन जब एनआरसी होगी तो उसके लिए क्या यही सब दस्तावेज प्रमाण पत्र मांगे जाएंगे जो नागरिकता कानून के नियमों में मांगे गए हैं आप खुद देखिए कि धर्म के नाम पर रक्षक बनने के चक्कर में कितनी खिचड़ी पक रही है कानून स्पष्ट होना चाहिए क्या यह सवाल महत्त्वपूर्ण नहीं है कि विवाह प्रमाण पत्र ड्राइविंग लाइसेंस आधार कार्ड दिखाने पर अगर नागरिकता मिल सकती है तो क्या इन 20 प्रकार के दस्तावेजों को दिखाने से एनआरसी में शामिल कर लिया जाएगा यही नहीं पहले नियम था कि जिलाधिकारी नागरिकता देगा लेकिन अब केंद्र सरकार की बनाई कमेटी तय
(24:43) करेगी यानी राज्यों का इसमें कोई बड़ा रोल नहीं होगा कमेटी में राज्य का एक ही प्रतिनिधि होगा और केंद्र का पांच तो संघवाद कहां गया इस मामले के डिटेल को धीरज के साथ पढ़िए बात सुनिए ठीक से सुनिए धर्म की राजनीति के नाम पर बात-बात में सीना मत फुलाइच पिचका रह जाएगा दिमाग सिकुड़ जाएगा खुलकर सोचिए और देखिए कि क्या इस कानून में आपको एक उदार सहिष्णु और आत्मविश्वास से भरा भारत नजर आता है या इसके जरिए कुछ लोकसभा क्षेत्रों में कोई वोट बटोर चाहता है नमस्कार मैं रवीश कुमार

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